मुर्गियों में सांस से जुड़े रोग से हैं अनजान ? सर्दी, खांसी, जुकाम भी ले सकता है जान !

मुर्गियों में सांस संबंधी रोग

क्या इंसान और क्या जानवर । ठंड के मौसम में खांसी, जुकाम, कफ और बुखार आम है । इस समस्या का ताल्लुक सीधे-सीधे श्वसन तंत्र की कमजोरी से जुड़ा है जिसे आसानी से ठीक किया जा सकता है । पशु-पक्षियों के मामले में जरा सी सावधानी और सूझबूझ इससे छुटकारा दिला सकती है । लेकिन जरा सी लापरवाही भारी नुकसान की वजह बन सकती है । मुर्गीपालन में अगर ज्यादा मुनाफा आपका मकसद है तो ऐसी समस्या का समय रहते समाधान जरूर कर लें । आइये इस Blog में विस्तार से जानते हैं ।

क्या है CRD ?

मुर्गियों की श्वसन प्रणाली अद्भुत है जिसमें कई अंग शामिल होते हैं। यह ऑक्सीजन को अवशोषित करने, गर्मी को बाहर निकालने, आवाज निकालने और धूल और कणों से सुरक्षा प्रदान करती है। लेकिन किसान की जरा सी लापरवाही से चूजे तो दूर, बड़ी मुर्गियां भी ठंड से होने वाली बीमारी की चपेट में आ जाती हैं अगर समय से इलाज न किया तो नौबत उनसे हाथ धोने तक आ जाती है । दरअसल, जब भी कोई मुर्गी खांसती या छींकती है तो इसका मतलब है कि वो चिकन श्वसन रोग (chicken respiratory disease) से पीड़ित है जिसे Chronic Respiratory Disease (CRD) कहा जाता है और Mycoplasma gallisepticum (एक बैक्टीरिया) के कारण होता है। हालाँकि रोग के लक्षण न्यूकैसल रोग, संक्रामक ब्रोंकाइटिस या फाउल हैजा जैसे दिखते हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में ये CRD के कारण ही होती है ।

लक्षण –

चिकन श्वसन रोग (respiratory diseases in chickens) के लक्षणों में खाँसी, छींक आना, सांस लेने में दिक्कत, गर्दन का लुढ़क जाना, सूजा हुआ चेहरा, नाक बहना, झागदार आँखें, सुस्ती इत्यादि शामिल है । ये कई बार एक-दो या फिर ज्यादा भी हो सकते हैं ।

रोकथाम –

अब सवाल उठता है कि पोल्ट्री में CRD को रोका कैसे जाए ? (How to prevent CRD in poultry) । तो इसके लिए मौसम में होने वाले अचानक परिवर्तन, फ़ीड में परिवर्तन, ठंडी हवा, परिवहन, आर्द्रता, कृमिनाशक, धूल और अमोनिया गैस के धुएं के कारण होने वाले तनाव को कम करना होता है । यदि आप नहीं चाहते कि आपकी मुर्गियों को बार-बार खांसी और जुकाम हो तो उन्हें तनाव के कारणों से जरूर दूर रखें। रोग दिखने पर मुर्गियों के आवास को साफ और कीटाणुरहित करें और कुछ हफ्तों के लिए खाली छोड़ दें।

ठंड के समय में चूजों को Ranikhet Disease Vaccine लगवाएं। साथ ही पानी में विटामिन A का प्रयोग अधिक मात्रा में करें। मुर्गी घरों के अंदर गर्माहट बनाए रखने के लिए कुछ करें, जिससे बाहर के वातावरण का असर कम हो। 60-100 वाट का बल्ब भी मुर्गीघर में जला सकते हैं, जो गर्माहट देता है । साथ ही, दाने-पानी की खपत का ध्‍यान रखें । ठंड में दाने की खपत बढ़ नहीं रही है तो ये भी किसी बीमारी का इशारा हो सकता है । ऐसे मौसम में पानी की खपत कम होती है लेकिन बार-बार शुद्ध ताजा पानी बदलकर देते रहें।

इलाज –

1. बीमार या प्रभावित मुर्गियों को अलग करें
इंसानों की तरह मुर्गियां भी एक-दूसरे से मिलना-जुलना पसंद करती हैं लेकिन इससे संक्रामक बीमारियों के पूरे झुंड में फैलने का खतरा रहता है । अच्छा तो ये होगा कि आप बाकी झुंड की सुरक्षा के लिए बीमारी के शुरुआती संकेत पर बीमार पक्षियों को अलग कर दें।

2. बीमार पक्षियों की देखभाल करें
यदि CRD गंभीर है, तो बीमार पक्षियों को पानी देने के लिए सीरिंज या ड्रॉपर का उपयोग करें । ये प्रक्रिया तब तक जरूरी हो सकती है जब तक कि पक्षी अपने आप पानी पीने के लिए तैयार न हो जाए । गंभीर मामलों में ताकत बहाल करने के लिए इलेक्ट्रोलाइट घोल दें ।

3.संक्रमण का इलाज करें
अपने पशु चिकित्सक की सलाह से फौरन उपचार शुरू करें । श्वसन तंत्र से जुड़े रोग लैरींगाइटिस, ब्रोंकाइटिस, ट्रेकाइटिस और यहां तक कि Pasteurella जैसे जीवाणु संक्रमण से निमोनिया का रूप भी ले सकते हैं । वहीं Aspergillus जैसे फंगल संक्रमण से फेफड़ों, वायुकोशों आदि में सूजन हो जाती है। एवियन इन्फ्लूएंजा, न्यू कैसल, फाउल-पॉक्स, कोरोना, आईएलटी (infectious laryngotracheitis), हर्पीज इत्यादि वायरस से होने वाले खतरनाक रोग हैं ।

4. दोबारा संक्रमण का खतरा घटाएं
बीमारी को फैलने से रोकने के लिए उचित प्रबंधन आवश्यक है। इसके लिए साफ-सफाई, दाना-पानी, टीका और दवाइयों का इंतजाम रकें । यह सुनिश्चित करने से कि मुर्गियाँ अब स्वस्थ हैं, दोबारा संक्रमण की संभावनाएं भी खत्म होंगी । चिकन की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Chicken’s immunity) को बढ़ाने में मदद के लिए एक अच्छे प्रोबायोटिक का उपयोग करें।

CRD खतरनाक तब होता है जब इसमें दूसरी बीमारियाँ शामिल हो जाती हैं। संक्रामक ब्रोंकाइटिस (IBV) एक ऐसा ही वायरस संक्रमण है जो खांसी, छींकने और खराब किडनी को गंभीर बीमारी की शक्ल दे देता है । ये माइकोप्लाज्मा गैलिसेप्टिकम वायरस के प्रकोप को बढ़ा सकता है, जिससे ठंड के महीनों में पोल्ट्री मृत्यु दर (poultry mortality rate) अधिक हो सकती है।

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