मुर्गियों में साँस से जुड़ी बीमारियों को पोल्ट्री में CRD यानी Common Respiratory Diseases in poultry कहते हैं । यह आमतौर पर कई सूक्ष्मजीवों यानी वायरस, बैक्टीरिया, कवक या फफूंद और माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma) से जुड़ी होती हैं। पोल्ट्री में ऐसी बीमारियों से ब्रॉयलर, लेयर और ब्रीडर मुर्गीयाँ तो प्रभावित होती ही हैं, अन्य पक्षी जैसे- कबूतर, बतख, तीतर इत्यादि भी खतरे की ज़द में रहते हैं । इलाज सही समय पर नहीं करने पर अन्य बीमारियां भी घेर लेती हैं और उनकी मृत्यु भी हो जाती है जिससे पशुपालक को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है । इस Blog में जानते हैं कि पोल्ट्री में श्वसन संबंधी रोग (shvasan rog) के लक्षण, सावधानी, कारण और उनका उपचार क्या है ।
क्या है बीमारी की पहचान ?
- मुर्गियां में सांस लेते समय घरघराहट की आवाज आना या लगातार खांसी होना
- नाक और आँख से पानी आना, आँखों से झाग निकलना या साइनस में सूजन होना
- मुर्गियां देखने में डेढ़-दो किलो की लग रहीं हैं लेकिन वजन बहुत कम निकलता है
- मुर्गियां इतनी सुस्त हो जाती हैं कि कई बार उन्हें सहारा देकर उठाना पड़ता है
- अंडे देने वाली मुर्गियों में अंडे का उत्पादन अचानक काफी कम हो गया हो
- मुर्गियों का शारीरिक विकास रुकना, भूख कम लगना और लंगड़ापन हो जाना
- मुर्गियों की बीट का पतला हो जाना, साथ ही हरे या लाल रंग का होना
किन बीमारियों का है खतरा ? –
- Aspergillosis जैसे कुछ फंगल संक्रमण से फेफड़ों और वायुकोशों सूजन हो जाती है
- Pasteurella जैसे जीवाणु संक्रमण से पक्षियों को घातक निमोनिया हो जाता है
- Type A Influenza वायरस avian influenza (एवियन इन्फ्लूएंजा) का कारण बनता है
- Fowl pox रोग pox-virus के कारण होता है । सांस की नली और त्वचा में छाले हो जाते हैं
- IBV (infectious bronchitis) कोरोना वायरस के कारण होता है जिससे खांसी होती है और अंडे के छिलकों पर झुर्रियां पड़ जाती हैं
- ILT (infectious laryngotracheitis) हर्पीस-वायरस के कारण होता है जिससे खूनी बलगम बनने लगती है
- इसी तरह new castle बीमारी है जिसमें हरे पानी वाले दस्त के साथ-साथ श्वसन संबंधी समस्या होती है
क्या है बीमारी का उपचार ?
पुरानी कहावत है कि दुर्घटना से देर भली या फिर prevention is better than cure. सावधानी की शुरुआत होती है चूजे लेते समय सतर्कता बरतने से क्योंकि चूजों की क्वालिटी काफी हद तक मुर्गियों के स्वास्थ्य और मुर्गीपालन में नफे-नुकसान को प्रभावित करती है। चूजे (chujey) लाने से पहले फार्म अच्छी तरह से साफ कर खुला रखें और तीन-चार दिनों तक लगातार संक्रमणरोधी (Disinfectant) पाउडर या स्प्रे का छिड़काव करें । हमेशा बीमार मुर्गियों को स्वस्थ मुर्गियों से अलग रखें । मुर्ग़ियों (mugiyon) के खाने और पानी पीने के स्थान को साफ-सुथरा रखें । यह जगह बैक्टीरिया और विषाणुओं से मुक्त हो । मुर्गीपालन (murgipalan) में बायोसिक्युरिटी (Biosecurity) के नियमों का ध्यान रखें अर्थात दूसरे ब्यक्ति और जानवर को आसानी से प्रवेश न करने दें ।
इस मामले में हर प्रकार की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें और जरूरत पड़ने पर पशुचिकित्सक से परामर्श करना न भूलें । इसी तरह पोल्ट्री का अच्छा मैनेजमेंट मुर्गियों को दोबारा संक्रमण या बीमारी फैलने से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किसी भी बीमारी के बाद भी कॉप को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए।
क्या है ‘आल इन, आल आउट’ फॉर्मूला ?
मुर्गीपालन में आल इन आल आउट (All in All Out ) की पद्धति को अपनायें यानी एक फार्म में सभी चूजे को एक ही बार डालें और बड़े हो जाने पर सभी मुर्गियों को एक ही बार बेच दें । वरना जो मुर्गियां आप नहीं बेचते हैं और यदि उनमें श्वसन की बीमारी (Respiratory Diseases) लग चुकी हैं तो नये चूजे (chicks) भी उसकी चपेट में आ जाएंगे । यह भी ध्यान रखें कि मुर्गियों के बेचने बाद पोल्ट्री फार्म (Poultry farm) की साफ-सफाई करने के सात दिनों के बाद ही नये चूजें डालें ।
RESPIFIT BY REFIT हर्बल अर्क और नीलगिरी तेल, थाइमस तेल, सिनामोमम के साथ मेन्थॉल तेल जैसे प्राकृतिक अवयवों से बना एक श्वसन टॉनिक और खांसी की दवा है जो उच्च गुणवत्ता वाले विटामिन और पूरकों से बना । यह एक ऐसा बेजोड़ मिश्रण है जो पाचन क्रिया को बढ़ाने के साथ ही जीवाणु, फफूंद, संक्रमण और सूजन से बचाता है । यह Antioxidant, coccidiostat और immunomodulator हैं । इसलिए श्वसन तंत्र को जलन से राहत देता है और पक्षियों का आसानी से सांस लेना संभव होता है । यह तनाव और दर्द को भी कम करता है ।