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ब्लूंटंग वायरस को हल्के में न लें, जुगाली करने वाले पशुओं को है ज्यादा खतरा !

bluetoung disease in cattle

इंसान हो या जानवर, जीभ अक्सर उसके किसी रोग से पीड़ित होने या होने की संभावना के संकेत दे देती है लेकिन ब्लूटंग ऐसा रोग है जिसमें पूरी की जीभ ही नीली पड़ जाती है । हाल ही में ब्लूटंग (blue tongue) वायरस यूरोप में एक नया खतरा बनकर उभरा है और वहां उसका नया स्ट्रेन तेजी से फैल रहा है । वैसे इसकी शुरुआत अफ्रीका से हुई थी और धीरे-धीरे दुनिया के अन्य देशों में भी फैलने लगा । आज भारत भी इस बीमारी के खतरे से अछूता नहीं है । कितना घातक है यह रोग, किन पशुओं को ज्यादा खतरा है, क्या होते हैं लक्षण और कैसे कर सकते हैं रोकथाम ? इस Blog में आपको मिलेगी पूरी जानकारी ।

जुगाली करने वाले पशुओं को खतरा

पशुओं में होने वाला ब्लू टंग (blue tongue) या नीलर्सना एक घातक रोग है जिसमें पूरी जीभ पर नीले-नीले चकत्ते पड़ जाते हैं । ज्यादातर जुगाली (jugali) करने वाले पशुओं यानि भेड़, बकरी, भैंस, हिरन और ऊंट इत्यादि में होने वाला यह रोग विषाणु जनित है और इंसानों को इससे कोई खतरा नहीं है ।

क्यूलिकोइड्स प्रजाति के छोटे कीट से बीमारी

दरअसल, कुछ कीटों विशेषकर Culicoides (क्यूलिकोइड्स) प्रजाति के काटने वाले छोटे कीटों (midges) द्वारा फैलता है जो आमतौर पर पानी वाले या दलदली इलाकों में पाए जाते हैं । संक्रमित जानवरों से रक्त पीने के बाद काटने पर दूसरे जानवर बीटी वायरस (BTV) से संक्रमित हो जाते हैं। यह संक्रामक नहीं है यानि बिना वाहक (carrier) के बीमारी एक जानवर से दूसरे जानवर में नहीं फैल सकती।

दुनिया भर में मौजूद हैं 28 सीरोटाइप-

विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) में ब्लूटंग एक सूचीबद्ध बहुप्रजाति रोग है जो बड़े सामाजिक-आर्थिक नुकसान का कारण बन रहा है। आज तक, दुनिया भर में BTV के 28 सीरोटाइप (serotype) रिपोर्ट किए गए हैं जिनमें से 23 भारत से हैं । प्रत्येक स्ट्रेन (strain) की बीमारी पैदा करने की क्षमता काफी भिन्न होती है। BT उत्पन्न करने वाले वायरस की पहचान रिओविरिडे  (Reoviridae) परिवार के सदस्य के रूप में की गई है।

भेड़ों के लिए घातक है ब्लू टंग

बीमारी की गंभीरता अलग-अलग प्रजातियों में अलग-अलग होती है लेकिन भेड़ों (sheep) में लक्षण सबसे गंभीर होते हैं । अक्सर भेड़ों में संक्रमण की दर अधिक होती है । परिणामस्वरूप वजन में कमी, ऊन बनने में कमी और रोग की अनदेखी पर मृत्यु तक हो जाती है ।

पूरे साल बना रहता है खतरा-

ब्लूटंग वायरस का संक्रमण (sankraman) पूरे साल हो सकता है, खास तौर पर बरसात के मौसम में। संक्रमित मवेशी किसी क्षेत्र में वायरस को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मवेशी कई हफ़्तों तक वायरस (virus) के स्रोत के रूप में काम कर सकते हैं, जबकि उनमें बीमारी के बहुत कम या कोई नैदानिक लक्षण नहीं दिखते हैं । इस तरह वे कीट वाहकों (insect vectors ) के लिए पसंदीदा बने रहते हैं।

भेड़ और बकरी में नीली जीभ के सामान्य कारणों में शामिल हैं:

वेक्टर ट्रांसमिशन-

यह काटने वाले छोटे कीड़े (midges) के काटने से फैलता है, जो ब्लू टंग वायरस के वाहक के रूप में कार्य करते हैं।

वातावरण का प्रभाव

गर्म और आर्द्र (moist) जलवायु जैसी पर्यावरणीय परिस्थितियों वाले क्षेत्र, वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार midges (छोटे कीड़े) के प्रजनन और प्रसार को बढ़ावा देते हैं ।

वायरस भिन्नता

ब्लू टंग वायरस (BTV) के विभिन्न उप-भेद या सीरोटाइप (serotype) मौजूद हैं, जो रोग की गंभीरता और असर को प्रभावित करते हैं।

संक्रमित पशुओं के लक्षण-
  • लगातार बुखार, शरीर का तापमान बढ़ना
  • मुंह और नाक के ऊतकों में गाढ़ा रक्तस्राव
  • सायनोसिस के परिणामस्वरूप ‘नीली’ जीभ
  • अत्यधिक लार आना, दस्त और उल्टी
  • होंठ, जीभ और जबड़े में सूजन होना;
  • कोरोनरी बैंड (खुर के ऊपर) में सूजन
  • लंगड़ापन, शरीर को धनुषाकार बनाकर रखना
  • कमज़ोरी, अवसाद, वजन घटना;
  • गर्भवती भेड़ों का गर्भपात हो सकता है
  • भेड़ों में ऊन की वृद्धि में रुकावट
रोकथाम और बचाव –

भेड़ और बकरियों में Blue Tongue (नीली जीभ) की रोकथाम में कई प्रमुख तैयारियां शामिल हैं जिनमें प्रचलित वायरस के उप-भेदों को टारगेट करने वाले टीकाकरण लागू करना अहम है। प्रजनन स्थलों का प्रबंधन और कीटनाशकों का उपयोग करके मिज आबादी को नियंत्रित करने से संचरण को सीमित किया जा सकता है। रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए । संदेह होने पर तुरंत योग्य पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

वायरस को रोके ‘रिगमिन फोर्ट’ 

एक बेहतर Immunity Booster वायरस से बचाव में आपके पशुओं की मदद करता है । Rigmin Forte powder एक ऐसा mineral mixture है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है । यह गाय, भैंस, बकरी और अन्य पशुधन के लिए एक उत्तम खनिज मिश्रण है जिसे नियमित रूप से चारे के साथ देने पर पशुओं को सभी आवश्यक खनिज और विटामिन मिल जाते हैं । इससे पशु सेहतमंद रहते हैं और उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ती है ।

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