मछलियों में भी होता है ‘फैटी लीवर’ रोग, बचाव के लिए अपनाएं ये तरीके !

मछलियों में फैटी लीवर रोग

जलीय कृषि (Aquaculture) में मछली के स्वास्थ्य को बनाए रखना और अधिकतम लाभ हासिल करना हमेशा से बड़ी चुनौती रहा है। लेकिन मछलीपालन (fish farming) का आनंद लेने के लिए पेशेवर तरीके से उनके स्वास्थ्य का प्रबंधन करते हुए समय पर सही समाधान ढूंढना महत्वपूर्ण है। जब बड़ी संख्या में मछलियाँ पाली जाती हैं तो उनका प्राकृतिक आवास पूरी तरह से बदल जाता है और ऐसे में मछलीपालक (fish farmer) का सचेत रहना जरूरी है । सघन कृषि परिवेश में मछलियों में जिगर (liver) की समस्याएं आम हैं। इस Blog में हम बात कर रहे हैं मछलियों में फैटी लीवर से संबंधित बीमारी के लक्षण, बचाव और उपचार के तरीकों की ।  

लीवर, यकृत या जिगर कितना जरूरी ?

जिगर सीधे तौर पर जीव की जिंदगी से जुड़ा है । ये वो धुरी है जिस पर शरीर का पूरा संतुलन टिका है । मनुष्य हो, पशु-पक्षी हों या जलीय जीव-जंतु (aquatic animals) सभी के लिए लीवर का ठीक-ठाक काम करते रहना जरूरी है । मछली और झींगा (shrimp) जैसे जलीय जानवरों का भी ये एक महत्वपूर्ण चयापचय अंग (metabolic organ) है जो विषाक्त पदार्थों को बाहर करता है और पोषक तत्वों को सहेजता है । इस सहज प्रक्रिया में रुकावट आने से कई रोग उत्पन्न हो सकते हैं । मछलियों में इस समस्या से (Liver problems in fish) शरीर कमजोर हो जाता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और बीमारियां जकड़ने लगती हैं।

लीवर में गड़बड़ी के नुकसान क्या हैं ?

कई बार देखा गया है कि अगर फ़ीड में पोषक तत्व का स्तर बहुत ज्यादा है या वो खुद विषाक्त है, रोगजनक सूक्ष्मजीव (microorganisms) हमला कर चुके हैं, प्रजनन घनत्व बहुत बड़ा है, जल की गुणवत्ता में गिरावट आ गई है या विटामिन की कमी पाई जा रही है तो लिवर (fish liver) को क्षति पहुंचने की संभावना रहती है । आंत में अगर वसा (fat) जमा हो जाएगा तो भी सामान्य काम में रुकावट आएगी और फैटी लिवर का विकार (fatty liver disorder in fish) शुरू हो जाएगा। इसलिए वसायुक्त चारे (fatty fodder) से परहेज जरूरी है ।

मछलियों का फैटी लिवर रोग क्या है ?  

मछलियों के फैटी लिवर विकार (Fatty liver disease of fishes) को हेपेटिक स्टेटोसिस (Hepatic steatosis) या वसायुक्त यकृत रोग (fatty liver disease ) कहा जाता है जिसमें लीवर कोशिकाओं में अत्यधिक वसा जमा हो जाता है । इससे चयापचय (metabolism) संबंधी विकार, रोग से लड़ने की ताकत में कमी और मृत्यु तक हो जाना बढ़ जाता है । जब मछलियों को उच्च-वसा वाला आहार खिलाया जाता है तो GPT (ग्लूटामेट पाइरूवेट ट्रांसएमिनेस) और GOT (ग्लूटामेट ऑक्सालेट ट्रांसएमिनेस) एंजाइम बढ़ जाते हैं, जो लिवर की क्षति के संकेतक हैं। लिपिड के उच्च स्तर को शामिल करने से ‘फैटी लीवर’ हो सकता है, जबकि अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट (excessive carbohydrates) भी ‘कार्बोहाइड्रेट-प्रेरित हेपेटिक लिपिडोसिस’ (Hepatic Lipidosis) का कारण बन सकता है। दोनों ही लीवर को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि ओमेगा 3 और ओमेगा 6 फैटी लीवर के प्रभावी उपचार में मदद करते हैं। ये लिपिड संचय (lipid accumulation) को कम करते हैं ।

क्यों लें सप्लीमेंट्स की मदद ?

मछली के स्वास्थ्य में सुधार और मछली के विकास को बढ़ावा देने के लिए रोजाना के मछली आहार (fish diet) के अलावा  विकास पूरक और स्वास्थ्य पूरक (fish growth and health supplements) भी दिए जाने चाहिए। जब जलीय जंतुओं का पाचन तंत्र (digestive system of aquatic animals) बेहतर होता है, तो यह भोजन से विभिन्न पोषक तत्वों को अवशोषित करवाने में सक्षम बनाता है। इससे मछली के चारे की बर्बादी कम हो जाती है और मछलियों का वजन (weight of fish) बेहतर रहने से व्यवसायिक लाभ भी बढ़िया हो जाता है।  

SEALIV-XL BY REFIT जैसे हर्बल लीवर टॉनिक (Liver Tonic for Fish) को लीवर की कोई समस्या न होने पर भी मछली को दिया जा सकता है। ये लीवर का ठीक रखता है जिससे पाचनतंत्र की कोई शिकायत नहीं आती। ये मछलियों के लीवर में फैट की घुसपैठ (Fat infiltration in fish liver) को रोकता है और लीवर की गड़बड़ी से त्वचा और आंखों का पीला पड़ना खत्म करता है । इस तरह आपकी मछलियां रहती हैं एकदम स्वस्थ और आपका मछलीपालन व्यवसाय फलता-फूलता रहता है।

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