भारत में देसी भेड़ों की टॉप 10 नस्लें ! ऊन, मांस और दूध के लिए कौन है बेजोड़ ?

भारत में देसी भेड़ों की टॉप 10 नस्लें

भेड़ पालन (sheep farming) किसानों के लिए आज भी आमदनी का एक बड़ा जरिया है । दरअसल इससे आय के 4  रास्ते खुल जाते हैं । भेड़ के दूध, ऊन और मांस के अलावा खेती के लिए खाद भी मिलती है । लेकिन भेड़पालन से कमाई (income from sheep farming) कई बातों पर निर्भर करती है जिसमें सबसे खास है उसकी नस्ल । देश में इनकी 45 प्रजातियां रजिस्टर्ड हैं लेकिन हर नजरिये से भेड़ों की टॉप टेन नस्लें (Top ten breeds of sheep in India) कौन-कौन सी हैं, आइये इस Blog में जानते हैं ।

चोकला

भारतीय भेड़ प्रजातियों में ‘चोकला भेड़’ (chokla sheep) को सबसे उम्दा नस्ल माना जाता है। शरीर मध्यम आकार का होता है, रंग लाल भूरे या गहरे भूरे रंग का होता है और नाक उभरी हुई होती है जिसे ‘रोमन’ नाक कहा जाता है । यह भेड़ सींग रहित (hornless) होती है । इसके ऊन का कोट घना और महीन होता है  जिससे पूरा शरीर ढका होता है। यही वजह है कि इसे ऊन उत्पादन (Chokla sheep wool production) के लिए ही पाला जाता है । इसीलिए इसे “राजस्थान की मेरिनो” कहते है।  प्रतिवर्ष डेढ़ से ढाई  किलो तक अच्छी गुणवत्ता का ऊन प्राप्त होता है जिससे जर्सी या कालीन बनाये जाते है।

नेल्लोर

इसका उत्पत्ति स्थान तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश है । Nellore Sheep भी एक बेहतरीन नस्ल है, जो बकरियों जैसी दिखती है। चेहरा और कान लंबे होते हैं और शरीर घने छोटे बालों से ढका होता है। ये अलग-अलग रंगों में पाई जाती है । कान लंबे और झुके हुए होते हैं, पूँछ छोटी और पतली होती है । ये मांस के लिए उपयोगी है (Nellore sheep useful for meat) ।

मारवाड़ी

घरेलू भेड़ की ये नस्ल राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में पाई जाती है । इसे मारवाड़ के 5 जिलों के साथ ही राजस्थान और गुजरात के कुछ पड़ोसी जिलों में भी पाला जाता है। Marwari sheep एक छोटी भेड़ है, जिसकी ऊँचाई गभग 60 सेमी होती है। बिना सींग वाली इस नस्ल का शरीर सफ़ेद और चेहरा काला होता है। इसे ऊन के लिए पाला जाता है  जिसका सालाना वजन औसतन 1.8 किलोग्राम होता है।

गद्दी

ये एक पहाड़ी नस्ल है जो जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सो में उपलब्ध है । पशु मध्यम आकार के और आमतौर पर सफेद होते हैं। मादा सींग रहित होते जबकि नर में सींग पाये जाते है । Gaddi sheep सबसे फुर्तीली नस्ल है जो साल में 1 से डेढ़ किलो ऊन देती है ।

दक्कनी

ये नस्ल दक्कन के पठार वाले इलाके यानी महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में पाई जाती है । गर्दन पतली, छाती संकरी और रीढ़ की हड्डी उभरी हुई होती है। deccan sheep के कान लटकते रहते हैं । रंग मुख्य रूप से काला होता है, जिसमें कुछ भूरा और लाल रंग होता है।

अविकालीन भेड़

इसे केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, टोंक ने विकसित किया है। इसे भी मेरीनो नस्ल के नर भेड़ तथा मालपुरा नस्ल की मादा भेड़ के संकरण से विकसित किया गया है। इससे पतला ऊन मिलता है जिससे कालीन बनते हैं । इसीलिए इसे ‘अविकालीन’ (avikaleen) नाम दिया गया है । इससे साल में करीब ढाई किलो ऊन मिल जाता है ।

अविवस्त्र भेड़

ये एक हाइब्रिड भेड़ नस्ल हैं जिसे मेरिनो और चौकला के वर्ण संकरण (character hybridization) द्वारा विकसित किया गया है। इससे हर साल ढाई से 4 किलो ऊन मिल सकता है । खास बात यह है कि avivasra भेड़ का वजन सिर्फ 6 महीने में 11 से 12 किलोग्राम तक पहुंच जाता है । इसके ऊन से कपड़े बनते हैं इसीलिए ‘अविवस्त्र’ नाम मिला है ।

मेयनी

meyani sheep गुजरात की महत्वपूर्ण प्रजाति है जिसका वजन 40 से 60 किलो के बीच होता है । ऊन के साथ ही इससे अच्छी क्वालिटी का दूघ भी मिलता है । मांस के लिए भी ये नस्ल बेहतर है । इसे हरियाणा, पंजाब, यूपी और राजस्थान में भी पाला जाता है ।

जत्ती

45 से 50 किलोग्राम वजन वाली Jutti sheep मुख्य तौर पर हरियाणा, राजस्थान, यूपी और पंजाब में पाई जाती है। मांस उत्पादन के लिए भी ये एक अच्छी नस्ल है । करीब 70 सेंटीमीटर की ऊंचाई वाली जत्ती भेड़ दूध उत्पादन (Jutti sheep milk production) के लिए किसानों के बीच ज्यादा पापुलर है।

मल्लनी

mallani sheep शारीरिक रूप से ज्यादा स्वस्थ और मजबूत बनावट वाली होती है। 45 से 50 किलो वजन इस भेड़ का होता है और शरीर का रंग गहरा भूरा होता है । पाचन शक्ति और अच्छी रोग-प्रतिरोधक क्षमता की वजह से जल्दी ही तंदुरुस्त हो जाती है ।

लोही

राजस्थान में Lohi sheep की नस्ल काफी पाई जाती है। भारत में ऊन उत्पादन में लोही भेड़ (Lohi sheep wool production) का प्रमुख योगदान है। नर भेड़ का वजन 60 से 70 किलोग्राम और मादा का 40 से 50 किलोग्राम तक होता है। ऊंचाई 60 से 70 सेंटीमीटर तक होती है । ये कम चारा खाकर भी अच्छा वजन पा लेती है।

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