डबल एटीएम, गरीब की गाय और चलती-फिरती डेयरी जैसी उपमाओं से सज्जित अगर कोई पशु है तो वह है बकरी । 2019 में हुई 20वीं राष्ट्रीय पशुधन गणना (Livestock Census) के मुताबिक देश में बकरियों की आबादी 148.88 मिलियन (14.88 करोड़) थी, जो पिछली गणना की तुलना में 10.1 प्रतिशत ज्यादा है । इनमें से अधिकांश यानी 95.5 प्रतिशत बकरियां ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। यही नहीं, भारत में उत्पादित कुल दुग्ध में 3 प्रतिशत और मांस में 13 प्रतिशत हिस्सा इनका है। ये आंकड़े गवाह है कि बकरी पालन का ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्या स्थान है । इस Blog में हम भारत में पायी जाने वाली बकरियों की पांच ऐसी नस्लों की बात करेंगे जो आपके बिजनेस में चार चांद लगा देंगी ।
व्यवसाय के रूप में बकरीपालन
बकरियां और भेड़ सीमांत और छोटे किसानों की आजीविका का एक बड़ा माध्यम हैं । बकरीपालन एक कम जोखिम और लागत वाला लाभदायक व्यवसाय है । बकरियों के जरिए कारोबार विभिन्न जलवायु में किया जा सकता है अर्थात वह शुष्क, अर्ध-शुष्क और यहाँ तक कि पहाड़ी क्षेत्रों में भी रहती हैं। वह नये वातावरण के मुताबिक खुद को ढाल लेने में भी सक्षम होती है । साथ ही समय के साथ यह व्यवसाय दूध, मांस, रेशों और खाल (फर) आदि की बढ़ती मांग को भी पूरा करता है । बकरी का दूध क्षय रोगियों के लिये उपयुक्त है और औसतन दूधकाल है 284 दिन ।
बकरियां और उनकी नस्लें
दुनिया में बकरियों की 300 से ज्यादा नस्लें हैं जबकि भारत मे 30 से ज्यादा नस्लें रजिस्टर्ड हैं । बकरीपालन के लिए भारतीय बकरियों की नस्लों (Indian goat breeds) की जानकारी से कारोबार में फायदा मिलेगा । नस्ल का चुनाव इस बात पर निर्भर करता है कि बकरीपालन का मकसद, क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, जलवायु और आसपास चारा-दाना क्या उपलब्ध है ।
कौन-कौन सी नस्ल हैं बेहतर ?
हर नस्ल की अपनी विशेषताएं हैं । किसी से दूध, किसी से मांस, किसी से रेशे, किसी से खाल तो किसी से मेमने ज्यादा मिलते हैं । लेकिन कुछ ऐसी भी हैं जो इनमें से दो या ज्यादा खासियत रखती हैं । हम बकरियों की उन्हीं टॉप पांच नस्लों (top 5 popular breeds of goats) की बात करेंगे जो दूध और मांस, दोनों नजरिये से फायदेमंद हैं । इसके लिए नीचे दिया चार्ट देखें ।
बकरी की नस्लों का कार्य के अनुसार वर्गीकरण: | |||
बकरियों की नस्ल | मांस के लिए | दुग्ध उत्पादन के लिए | मिश्रित उपयोगिता |
जमुनापारी | बीटल | जमुनापारी | सिरोही |
सिरोही | सिरोही | बारबरी | ब्लैक बंगाल |
बीटल | सोसन | बीटल | जमुनापारी |
बरबरी | जमुनापारी | सिरोही | बीटल |
ब्लैक बंगाल | नान्दी | पातना | पातना |
इस तरह पहला नाम है उस्मानाबादी जो महाराष्ट्र के उस्मानाबाद, सोलापुर और अहमदनगर में ज्यादा पाई जाती हैं । ऊंचा कद, काला रंग ( कभी-कभार काले, सफेद और भूरे धब्बे ) और मध्यम आकार के कान इनकी पहचान है । एक दुग्धकाल में 50 से 70 किलो तक दूध देती हैं ।
सांगमनेरी बकरी भी महाराष्ट्र के सांगमनेर से ताल्लुक रखती है । अहमदनगर और पूना में भी अच्छी तादाद है । मध्यम कद-काठी, सफेद रंग ( कभी-कभार भूरे-काले रंग का मिश्रण), छोटे-खुरदुरे बाल, झूलते कान और पीछे की ओर मुड़ी सींग से पहचानी जाती हैं । यह भी एक दुग्धकाल में 70-80 किलो दूध देती है ।
बीटल का नाता पंजाब के गुरुदासपुर के बटाला इलाके से है और पंजाब में पापुलर है । आकार मध्यम लेकिन अच्छी कद-काठी, लंबे लटके हुए कान, भूरा रंग (कभी-कभार सफेद धब्बे) होता है । बकरी की यह नस्ल भी दूध-मांस दोनों के लिए उत्तम है । एक दुग्धकाल में इसकी क्षमता डेढ़ से दौ सौ किलो तक पहुंच जाती है ।
राजस्थान में पापुलर मारवाड़ी नामक नस्ल की बकरी का ताल्लुक मारवाड़ इलाके से है । बीच का आकार, काले-घने बाल, नीचे की ओर मुड़े कान इनकी पहचान हैं । एक दुग्धकाल में यह औसतन 90 किलो तक दूध दे देती है ।
गुजरात के कच्छ इलाके से जुड़ी है कच्छी नस्ल की बकरी । काला रंग (गले, मुंह और कानों पर सफेद धब्बे), लंबे कान, उभरी हुई नाक, मोटे और नुकीले सींग कच्छी बकरियों की पहचान है । यह एक दुग्धकाल में 100 से 150 किलो तक दूध देती है ।
भारत में बकरी की नस्लों को क्षेत्र की जलवायु के अनुसार वर्गीकरण किया जाता है जिससे उनकी अनुकूलता, उत्पादन क्षमता और सहजता जुड़ी है । देखें चार्ट ।
बकरी की नस्लों का जलवायु के अनुसार वर्गीकरण
जलवायु | क्षेत्र | नस्ल |
ठंडा (Cold) | हिमालय व हिमाचल | गद्दी, चांगधांगी, चेंगू, भकरवाल |
शुष्क (Dry) | उत्तर भारत, मध्य भारत, राजस्थान, गुजरात | सिरोही, मारवाड़ी, बीटल, जखराना, बारबरी, जमुनापारी, मेहसाणा, गोहिलवादी, कच्छी, सूरती |
समुद्रतटीय व उष्ण कटिबंधीय(Coastal and tropical) | दक्षिण भारत | व्हाईट सांगमनेरी, उस्मानाबादी, कनी अडू, मालाबारी |
उष्ण तथा आर्द्र (Hot and humid) | पश्चिम बंगाल, ओडिसा, बिहार, असम छोटानागपुर, | गंजम, ब्लैक बंगाल |
SUPER MASS BY REFIT एक ऐसा सप्लीमेंट है जो बकरियों का वजन बढ़ाने (Goat weight gain supplement) के एक कारगर फॉर्मूले पर आधारित है । इसमें बड़ी संख्या में ऐसे घटक (components) हैं जो आपकी बकरी के शारीरिक विकास और वजन (Goat wait gainer) के लिए बहुत सहायक हैं। इसका प्रयोग भी आसान है । 30 ग्राम पाउडर में थोड़ा सा पानी (लगभग 1 चम्मच) छिड़क कर गीला कर लें। फिर छोटी-छोटी लोइयां बनाकर 10 मिलीलीटर सरसों का तेल के साथ खिलाएं । ध्यान रहे, सरसों के तेल का प्रयोग सप्ताह में केवल दो बार करें।